Rawa Rajput Matrimony | Online Matrimonial for Rawa Rajput community

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Company Description






Rawa Rajput Matrimony.com is a site to help you find brides & grooms
for all Rawa Rajput boys & girls. By this site we have tried to cater to
the the growing need of a place to find a suitable match for the people
within the Rawa Rajput community. We hope to help the parents by ending their
excruciating search for a suitable match for their children.



We are in 21st century and Rawa Rajput community still do not have any
dedicated matrimony site to serve the very essential need of finding a
suitable match for marriage. Because of this, till now every parents in Rawa
Rajput community face problems in finding the best match for their children.
Beacuse of this lots of brilliant and educated children have gone to other
caste, and resulted a heavy damage / lose to our community. By this site we
have tried to give a global platform to find a perfect match with in the Rawa
Rajput community.



Global approach



By this site we can search the prospective bride & groom in other
countries also and the other distant states in India.



So by all this we can find a perfect and suitable life partner for our
talented and educated young generation within the Rawa Rajput Community.

प्राचीन काल में हमारे देश ने वि‍श्‍व में जो गौरव प्राप्‍त कि‍या था उसमें
हमारे पूर्वजों का अथक प्रयास, साहस, शोर्य और बुद्ध्‍ि‍मता का योगदान था। कि‍सी
भी देश की शासन व्‍यवस्‍था उसके सांस्‍कृति‍क आर्थि‍क नैति‍क व प्रशासनि‍क स्‍तर
का नि‍रधारण करती है। भारतीय संस्‍कृति‍ और सभ्‍यता के वि‍कास मे राजपूतों का
अमि‍ट योगदान रहा है। भारतवर्ष की पवि‍त्र भूमि‍ पर राजपूत क्षत्रि‍यों के अनेक
वंश, गोत्र, ऋषि‍गोत्र,  शाखाऐं रही है
जो भि‍न्‍न भि‍न्‍न स्‍थानो पर वि‍भि‍न्‍न नामों से अपनी पहचान बनाऐ हुए है।
इनमे बहुत सी व्‍यक्‍ति‍ वि‍शेष, राजवंश, स्‍थान, संगठन एवं ऋषि‍ परम्‍परा  के नाम से वि‍ख्‍यात हैं। रवा राजपूत उनमे से
एक है। इसे ही कुछ इति‍हासकारो ने रया, रवा, रावाद, राजन्‍य ,रैवा और राय आदि‍
नामों से सम्‍बोधि‍त कि‍या है।



इनमे प्रमुख वि‍द्वान डा.गणेशी लाल वर्मा, सब्‍जी मंडी, दि‍ल्‍ली, डा.
रामसि‍हं रावत, नरायणा, दि‍ल्‍ली, नेमपाल सि‍हं वर्मा मौजपुर दि‍ल्‍ली,  श्री हरगोवि‍दं सि‍हं व बलबीर सि‍हं वीर,
बरमपुर बि‍जनौर, डा. हमेन्‍द्र कुमार राजपूत, वशुन्‍धरा गाजि‍याबाद आदि‍ हैं।
अधि‍कांश वि‍द्वानो का मत है कि‍ रवा शब्‍द दुसरे शब्‍दों का अपभ्रशं या
शाब्‍दि‍क संधि‍ से उत्‍पन्‍न शब्‍द है। परन्‍तू गोवि‍न्‍द सि‍हं ने रवा शब्‍द
को मौलि‍क रूप मे स्‍वीकार कि‍या है और स्‍वदेश चर्चा पत्रि‍का के सम्‍पादक
आनन्‍द प्रकाश आर्य वैद्व ने  भी अपने
लेखों में इसका प्रयोग कि‍या है।  मैंने
लगभग सभी विद्वानों के लेखों, पुस्तकों एवं इतिहास पुराण, शब्दकोश तथा महाभारत
जैसे शास्त्रीय ग्रन्थों का अध्ययन किया है मेरी और इतिहास की ऐसी मान्यता है कि
कोई भी शब्द तब तक अपभ्रंश नही हो सकता जब तक वह अपने मूल स्वरूप में ऐतिहासिक
ग्रन्थों व शास्त्रों में विधमान हों।



रवा शब्द का सम्बन्ध शास्त्रों में पुरू रवा से है जो रवा राजपूतों के आदि
पुरूश कहे जाते है। इनका इतिहास लाखों वर्ष पुराना है। छठे मन्वन्तर (चाक्षुश
मन्व-तर) काल के अन्तिम चरण में भौगोलिक घटनाओं के कारण प्रलय आयी थी और पूर्ण
सृश्टि नश्ट हो गयी थी। ब्रहमा जी की भविश्यवाणी के अनुसार और उपाय बताने के
आधार पर मनु वैवस्वत ने सप्तऋशियों के साथ एक नौका में सृश्टि के सम्पूर्ण बीज
सुरक्षित रख लिए थे। मनु ने अपनी नौका हिमाचल प्रदेश में मनाली के पास स्थापित
की थी, महाभारत, विश्णु और मार्कण्डेय पुराण में इसका विस्तृत उल्लेख मिलता है।
आज भी नौका बन्धन नाम का स्थान मनाली के पास है और यही पर सरस्वती नदी के तट पर
वैवस्वत मनु ने सृश्टि का पुन: आरम्भ किया था। मनु द्वारा मानव उत्पत्ति का
स्थान ही मनाली नाम से प्रसिध्द हुआ। यहां मानव जीन्स विधि से सृश्टि का विस्तार
किया गया था, वर्तमान विज्ञान इसकी मान्यता देता है। सप्तऋशियों के नाम से ही
ऋशि गौत्र प्रारम्भ हुआ और इस समय से सांतवा मन्वन्तर (वैवस्वल मन्व-तर) काल
प्रारम्भ होता है। कष्यप ऋशि द्वारा सृश्टि का पुरा विकास होता गया।

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